Thursday, September 29, 2016

तुह्मत तो लाजवाब दो जी होश में हूँ मैं

अब तो मुझे शराब दो जी होश में हूँ मैं
और वह भी बेहिसाब दो जी होश में हूँ मैं

सच्चाइयों से ऊब चुका हूँ बुरी तरह
अब इक हसीन ख़्वाब दो जी होश में हूँ मैं

मेरे किये का ख़ाक मिलेगा मुझे सवाब
तुह्मत तो लाजवाब दो जी होश में हूँ मैं

अर्ज़ी मेरी क़ुबूल हो उल्फ़त की आज ही
या तो मुझे जवाब दो जी होश में हूँ मैं

ग़ाफ़िल समझ के टाल रहे जुगनुओं पे बात
मुझको तो माहताब दो जी होश में हूँ मैं

-‘ग़ाफ़िल’

1 comment:

  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-10-2016) के चर्चा मंच "आदिशक्ति" (चर्चा अंक-2482) पर भी होगी!
    शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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