Monday, December 28, 2015

ग़मज़दा हैं दूर से मेरा जनाज़ा देखकर

मेरी सूरत देखकर या मेरा रुत्बा देखकर
आपने मुझको बहुत चाहा था पर क्या देखकर

मैं भला यह क्यूँ कहूँ जलता मेरा जी है बहुत
ग़ैर जानिब आपको यूँ मुस्कुराता देखकर

क्यूँ पशेमाँ हो रहे अब पास भी आ जाइए
ग़मज़दा हैं दूर से मेरा जनाज़ा देखकर

है पता यह हुस्न है मिह्मान बस कुछ रोज़ का
टीस पर उट्ठेगी जी में उसको जाता देखकर

क्या बताऊँ हैं परीशाँ किस तरह सारे रक़ीब
तीर नज़रों का मेरे सीने पे चलता देखकर

हो न हैरानी जिसे वह ख़ाक फ़र्माएगा इश्क़
आपका दामन ये उड़ता बादलों सा देखकर

दाद तो भरपूर मिलती है मगर क्यूँ लग रहा
शे’र सुनकर कम, बहुत ग़ाफ़िल का चेहरा देखकर

-‘ग़ाफ़िल’

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