Friday, November 02, 2012

वह बंजारे की रात कहाँ?

अबके इस आवारापन में उस आवारे की बात कहाँ
जो गाते-गाते गुज़री है उस बंजारे की रात कहाँ

चलते में सोयी सोयी सी, वह ख़्वाब में खोयी खोयी सी,
हँसते भी रोयी रोयी सी उस बेचारे की जात कहाँ

वह अल्हड़ शोख़ जवानी सी, बहती नदिया मस्तानी सी,
बिल्कुल जानी-पहचानी सी इकतारे की सौगात कहाँ

-‘ग़ाफ़िल’


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3 comments:

  1. वाह वाह .. बहुत खूब

    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं।
    धन्यवाद !!
    http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/10/blog-post.html

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  2. जो गाते गाते गुजरी है वह बंजारे की रात कहाँ,,,,,
    वाह,,बहुत सुंदर पंक्तियाँ,,,,गाफिल जी,,,बधाई स्वीकारें,,,,

    RECENT POST : समय की पुकार है,

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