Saturday, July 09, 2016

रब मुझे बस दूर रक्खे आज के नग़्मात से

ठेस लग जाती है जिनको बस ज़रा सी बात से
कह रहे हैं वे के हम तो लड़ रहे हालात से

हम परीशाँ हैं के ढकने को बदन, कपड़े नहीं
ख़ुश हैं काफी लोग इज़्ज़त के भी इख़्राजात से

आप तो ऐसे न थे मैं भी हूँ इतना जानता
वज़्ह क्या है डर रहे जो आप मा’मूलात से

चाँद को रोटी बताऐं कम नहीं ऐसे भी लोग
यूँ भी बेहतर खेलते रहते हैं वो जज़्बात से

ताल-सुर और भाव-भाषा, बह्र तक ग़ायब हुई
रब मुझे बस दूर रक्खे आज के नग़्मात से

आप तो शाइर हो ग़ाफ़िल जी वग़ैरह कहिए मत
कोफ़्त होती है बहुत, कुछ ऐसे तंज़ीयात से

{इख़्राजात=व्यय, मा’मूलात= मा’मूल (रोज़मर्रा की सामान्य चर्या) का बहुवचन, तंज़ीयात= तंज़ (व्यंग्य) का बहुवचन}

-‘ग़ाफ़िल’

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (11-07-2016) को "बच्चों का संसार निराला" (चर्चा अंक-2400) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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