Wednesday, November 18, 2015

कुछ अलाहदा शे’र : हो ही जाते हैं गुलाबी सब-के-सब चेहरे हसीन

1-
जो कैदी है ज़माने से वही तो है ज़मीर अपना
कभी सोचा है यारों के उसे भी अब छुड़ाना है?
2-
कमाई हैं सदियाँ जो दौलत वफ़ा की
उसे लम्हे चाहें रखें या उड़ा दें
3-
किस तर्ह बचे अस्मत अब सोच ज़रा ग़ाफ़िल
मजनू के सगे हैं सब जो साथ हैं डोले के
4-
अजब उलझी हवाओं की लटों को,
न पूछो किस तरह सुलझा रहा हूँ।
5-
ज़ख़्मे दिल पर इश्क़ का मरहम कोई
गर लगा दे फ़ाइदा हो जाएगा
6-
आज अह्बाब हँस रहे मुझ पर
इश्क़ का भी अजब करिश्मा है
7-
आज कोई वहीं नहीं मिलता
चाहिए था जिसे जहाँ होना
8-
महफ़िल की तेरे यार है ये कैसी ख़ासियत
आती ज़ुबान पर है तेरे बाद शा’इरी
9-
कुछ तो है जो बज़्म में ग़ाफ़िल के आते ही जनाब
हो ही जाते हैं गुलाबी सब-के-सब चेहरे हसीन
10-
जी मेरा जलाने की आदत न गयी उनकी
रंगीन तितलियों पे अब भी हैं मचल जाते

-‘ग़ाफ़िल’

2 comments:

  1. क्या बात, क्या बात, क्या बात !!!

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  2. कमाई हैं सदियाँ जो दौलत वफ़ा की
    उसे लम्हे चाहें रखें या उड़ा दें
    ..बहुत खूब!

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