Monday, August 03, 2015

दार है अब कहाँ रिहाई है

हुस्न ने की जो बेवफ़ाई है
इश्क़ की आबरू पे आई है

उसका पीछा नहीं मैं छोड़ूंगा
क्या करूँ दिल पे चोट खाई है

आज गुस्ताख़ हो न जाऊँ मैं
वह जो नाज़ो अदा से आई है

हुस्न वालों का यक़ीं मत करना
इनकी फ़ित्रत में बेवफ़ाई है

आज देखा तो चाँद छत पर था
या ख़ुदा क्या तिरी ख़ुदाई है

ज़ुल्फ़े ज़िंदाँ में कैद हूँ अब तो
दार है अब कहाँ रिहाई है

-‘ग़ाफ़िल’

3 comments:

  1. हुस्न वालों का यक़ीं मत करना
    इनकी फ़ित्रत में बेवफ़ाई है


    क्या खूब.

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